क्रिकेट खेलने के १० नुकसान

⭕आज का सवाल नंबर ९६२⭕

क्रिकेट देखना और खेलने का क्या हुक्म है ? इस से वर्ज़िश भी होती है ?

🔵जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

क्रिकेट खेलने में हस्बे ज़ैल खराबियां है.

१. इसमें खेलने वाले के जिस्म को सख्त नुकसान पहोंचता है, बाजों की टाँगें टूटना और बाजों के सर या पेट में चोट लगने से मौत के मुंह तक पहोंच जाना हम ने खुद देखा है.

२. आने जाने वालों को चलने और गाडी चलाने के रास्ते पर खेलने की वजह से गुजरने में तकलीफ होना, कोई इंसान बल्कि कोई हैवान भी इत्मिनान से गुज़र नहीं सकता.

३. आने जाने वाली गाड़ियों को और खेलने वालों को एक्सीडेंट की वजह से जान जाने या चोट आने का खतराः.

4. आने -जाने वालों और आजु -बाजु के लोगों को बॉल या बेट से चोट लगने का खतराः बल्कि बाज़ की आँखें फूटने और बाजों के चेहरे बदलने के वाकिआत भी पेश आते रहते है.

5. पड़ोसियों के घरों के शीशे या खिड़कियां टूट जाना.

६. आउट होने न होने में जूठ, धोका, झगडे, दिली रंजिश, किना , दुश्मनी अदावत वगैरह गुनाह में मुब्तला होना.

७. अगर हार जीत की शर्त लगाई जाये तो जुवे का गुनाह.

८. इनाम देने वाली तीसरी पार्टी या जमात हो तो अगर उस का जाती पैसा है तो फ़ुज़ूल खर्ची और हराम काम में सपोर्ट करने का गुनाह, अगर क़ौम का पैसा है तो अमानत में खियानत करने और दूसरे मुस्तहिक़ीन का हक़ मारने का भी गुनाह.

९. खेल की मश्गुलि की वजह से फ़र्ज़ नमाज़ या उस की जमात छोड़ना.

१०. अपना कीमती वक़्त जिस में दुनिया और आख़ेरत कमा सकते है इस खेल में जायेए करना, और खेल ख़त्म होने के बाद भी उस के तज़किरों में वक़्त जायेए करना.

👉🏻रही बात वर्ज़िश -कसरत की तो इसमें वर्ज़िश के मतलब पर तमाशे का मतलब ग़ालिब -बढ़ा हुवा है. उस की दलीलें.

१. किसी वर्ज़िश को पूरी दुनिया में कोई खेल नहीं कहता, पहलवान वर्ज़िश करते है, डॉक्टर मुख़्तलिफ़ बिमारियों के लिए वर्ज़िशें बताते है, कोई भी उस को खेल नहीं कहता, गेंद और फुटबॉल को कोई भी वर्ज़िश नहीं कहता बल्कि खेल कहते है.

२. वर्ज़िश को देखने के लिए दूसरे लोग जमा नहीं होते, कोई एक आदमी चला गया तो अलग बात है.

३. क्रिकेट, फुटबॉल वगेरा के मुक़ाबला को दिखाने के लिए लोग टीवी पर घंटों बैठे रहते है, किसी वर्ज़िश को दिखाने के लिए किसी हुकूमत में किसी मुल्क में कोई इंतिज़ाम नहीं.

४. वर्ज़िश में कोई ऐसा मशगूल नहीं होता के ज़रूरत से ज़ाईद करता ही चला जाये, वक़्त मुतअय्यन होता है, आधा घंटा, घंटा, जब वक़्त गुज़र जाता है तो शौक़ नहीं रहता, इस शैतानी धंधे का हाल ये है के अगर शुरू किया तो होश नहीं रहता, खेलते ही चले जाते है, मा'अलुम हुवा के ये वर्ज़िश नहीं बल्कि खेल तमाशा है.

📗 अहसनुल फतावा ८ /२५८ से २६१
aur

📘महमूदुल फतावा ४ /८११ से ८१३ से माख़ूज़ इज़ाफ़े के साथ

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

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