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जहेज़ लेने वाले का वलीमा

⭕सवाल⭕ निकाह में लड़की वालों से मुतय्यन (फिक्स) कर के रूपया लेना जाइज़ है या नहीं ? अगर किसी ने लिया हो तो उस के वलीमा में शिरकत करना कैसा है ? 🔵जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما जाइज़ नहीं. 📗महमूदुल फतावा ५/६९४. و الله اعلم بالصواب ✍🏻मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया. 📲 *Download App* - Goo.gl/mg4455

उलमा ए देवबंद पर बरेलवियों की तोहमतों के जवाबात

🔴आज का सवाल नंबर १०७५🔴 जैसा इल्म ए ग़ैब रसूलुल्लाह ﷺ को है ऐसा इल्म ए ग़ैब तो हर जानवर नीज़ बच्चे और पागल को भी हासिल है. इसमें सरकार ﷺ की क्या तखसीस है ? क्या यह बात हज़रात मौलाना अशरफ अली थानवीرحمت اللّٰہ علیہ की किताब हिफज़ुल ईमान में लिखी है ? 🔵अल-जवाबात🔵 यह इबारत सेम (जैसे बताई गयी वैसी) हिफ़्ज़ उल ईमान में नहीं है. हिफ़्ज़ उल ईमान की इबारत यह है. “फिर यह के आप ﷺ की ज़ात पर इल्म ए ग़ैब का हुक्म किया जाना अगर बा-क़ौल ए ज़ैल सहीह हो तो दरयाफ्त तलब अम्र (बात) यह है के इस इल्म ए ग़ैब से मुराद बा'ज इल्म ए ग़ैब है या कुल ग़ैब ? अगर बा'ज उलूम ए गैबियह मुराद है तो इसमें हुज़ूर ﷺ की क्या तखसीस है ? ऐसा इल्म ए ग़ैब तो ज़ैद बल्कि हर सभी (बच्चा) व मजनूँ बल्कि जामेअ (तमाम) हैवानात व बहाइम (चौपाये) के लिए भी हासिल है. 📗हिफ़्ज़ उल ईमान १८ स्कैन पेज खियानत : यहां पर अहले बातील ने यह अलफ़ाज़ *“जैसा इल्म ए ग़ैब हुज़ूर ﷺ को है“* अपनी तरफ से लिख कर मौलाना अशरफ अली थानवी رحمت اللّٰہ علیہ की इबारत के साथ जोड़ दिया है और *अपने मतलब के मुताबिक़ इबारत बनाली है और ऐतेराज़ कर दिया है.* मौलाना अशरफ अल

पहले हज करे या उमराह

*પહેલે હજ કરે યા ઉમરહ* *PEHLE HAJ KARE YA UMRAH* ⭕आज का सवाल नंबर.१०६४⭕ ताक़त के बा वजूद हज से पहले उमराह करना कैसा है ? 🔵JAWAB🔵 حامدا و مصلیا و مسلما उमराह हज का बदल नहीं हे, जिस शख्स पर हज फ़र्ज़ हो उसके लिए ज़रूरी हे के वो हज करे, जिस शख्स को हज के दिनों में बैतुल्लाह तक पहुँचने और हज तक वह रहने की ताक़त (खर्च, इंतिज़ाम, इजाज़त) हो उन पर हज फ़र्ज़ हो जाता हे, इसलिए ऐसे शख्स को जो सिर्फ एक बार बैतुल्लाह शरीफ पहुँचने की तमन्ना रखता हो, हज पर जाना चाहिए, उमराह के लिए सफर करना और फ़र्ज़ियत के बावजूद हज न करना बहुत गलत बात हे. 📚आपके मसाइल और उनका हल, जिल्द- ४, सफा नम्बर ३८ و الله اعلم بالصواب ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा, सूरत, गुजरात, इंडिया. *પહેલે હજ કરે યા ઉમરહ* ⭕ આજ કા સવાલ નં. ૧૦૬૪ ⭕ તાકત કે બાવજુદ હજ સે પહેલે ઉમરહ કરના કૈસા હૈ.? 🔵 જવાબ 🔵 حامدا و مصلیا و مسلما *ઉમરહ હજ કા બદલ નહિં હૈ, જીસ શખ્સ પર હજ ફર્ઝ હો ઉસકે લીયે ઝરૂરી હૈ કે વોહ હજ કરે.* જીસ શખ્સ કો હજ કે દિનો મેં બૈતુલ્લાહ તક પહુંચને ઔર હજ તક વ

शश ईद के रोज़े कैसे रखे?

*SHASH EID ROZE KAISE RAKHE?* ⭕आज का सवाल नंबर.१०५४ ⭕ शश ईद के ६ रोज़े कब रखना शुरूआ करना चाहिए ? ६ लगातार रखना ज़रूरी है या अलग अलग भी रख सकते है ? 🔵जवाब🔵 पुरे शव्वाल के महीने में कभी भी रख सकते है. अलग अलग-फासला कर के रखना बेहतर है मुसलसल लगातार रखना भी मकरूह नहीं. 📗फतावा दारुल उलूम ६/४९१ बाहवाला शामी واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया *SHASH EID ROZE KAISE RAKHE?* ⭕आज का सवाल नंबर.१०५४ ⭕ शश ईद के ६ रोज़े कब रखना शुरूआ करना चाहिए ? ६ लगातार रखना ज़रूरी है या अलग अलग भी रख सकते है ? 🔵जवाब🔵 पुरे शव्वाल के महीने में कभी भी रख सकते है. अलग अलग-फासला कर के रखना बेहतर है मुसलसल लगातार रखना भी मकरूह नहीं. 📗फतावा दारुल उलूम ६/४९१ बाहवाला शामी واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

ईद मुबारक कहना

🔴आज का सवाल नंबर. १०५३🔴 आज कल लोग ईद के मवका पर ईद मुबारक कहते है इस का क्या हुक्म है इस का कोई शरीअत में सुबूत है ? 🔵जवाब🔵 लफ़्ज़े ईद मुबारक को सुन्नत और ज़रूरी समझे बगैर इन अलफ़ाज़ से मुबारक बादी देने में कोई हरज नहीं. मुस्तहब ये है के निचे के लफ़्ज़ों से मुबारकबादी दी जाये. हज़रात वसीलाह रदियल्लाहु अन्हु  फरमाते है के मेने नबी ए करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से ईद के दिन मुलाक़ात की है और मेने कहा *तकबल्लाहु मिन्ना व मिन्क* *अल्लाह हमारे और तुम्हारे नेक अमल क़बूल फरमाएं.* नबी सलल्लाहु अलैहि वसललम ने इरशाद फ़रमाया हाँ ज़रूर *तकबल्लाह मिन्ना व मिन्क* (सुनने बैहक़ी लील कुबरा हदीस नंबर ६०८८) अल्लामह अल्बानी रहमतुल्लाहि अलैहि ने इस हदीस की ताईद की है. और साहिबे हील्याह ने और मुहक़ीक़ इब्ने अमीरुल हाज ने सहीह सनदों के साथ बहोत से आसारे सहाबा नक़ल किये है और मुबारक के मवके पर बरकत की दुआ देना भी साबित है इस से ईद मुबारक कहना जाइज़ है 📚(मुहक़्क़क़ व मुदल्लल जदीद मसाइल (मुफ़्ती जाफर साहब रहमानी की) सफा १०१ बा हवाला 📘रद्दुल मुहतर आला दुर्रिल मुख़्तार ३/४७ किताबुस सलात) 📕 खैरुल फतावा

मुसाफह और मुआनकह

🔴आज का सवाल नंबर १०५२🔴 मुसाफह और मुआनकह कब करे ? 🔵जवाब🔵 जब भी मुस्लमान भाई से मुलाक़ात हो सब से पहले उसे सलाम करे फिर मुसाफह करे पहल करने वाले पर अल्लाह की ९० रहते उतरती है और दूसरे पर १० और जुड़ा होने से पहले अल्लाह ताला दोनों की मगफिरत फरमा देते हैं (मज़ाहिरे हक़) मुसाफह सलाम का तकमीलाह है यानि उस से सलाम मुकम्मल होता है और सलाम के बाद करना चाहिए. ईद के दिन नमाज़ के बाद मस्जिद में मुसाफह शियों की मुशाबेहत की वजह से मना है मस्जिद के बहार अगर मुलाक़ात न हुई हो तो मुलाक़ात की निय्यत से मुसाफा करे. ईद की खास सुन्नत और तरीकाः समझ कर न करे और मुआनकह सफर से आने के बाद या पहली बार मुलाक़ात हो रही हो तो मुआनकह करना चाहिए, ईद की मख़सूस रस्म समझकर मुआनकह न करे मुल्ला अली करि रहमतुल्लाहि अलैहि लिखा है फिर भी कोई मुसाफह के लिए हाथ बढ़ाये तो हाथ न खींचे हाथ खींचने में उस की ज़िल्लत होगी और उसे तकलीफ पहुंचेगी और ये हराम है, उस वक़्त मुसाफा कर ले फिर प्यार मुहब्बत से समझा दे, गरज़ नफरत का माहौल पैदा हो ऐसी कोई सूरत इख़्तियार न करे. हम एहले सुन्नत व जमात हैं, जो इबादत हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्ल

सदक़ए फ़ित्र कब दें ?

⭕आज का सवाल नंबर १०५१⭕ सदक़ए फ़ित्र कब देना चाहिए ? रमजान में दे सकते है ? ईद के दिन नहीं दिया तो क्या हुक्म है ? حامدا و مصلیا و مسلما 🔵जवाब🔵 सदक़ा फ़ित्र ईद के दिन ईदगाह में जाने से पहले देना चाहिए. रमजान में भी दे सकते है और ईद के दिन नहीं दिया तो मुआफ नहीं होता अब किसी भी दिन दे दें. 📗मसाइले रोज़ा सफा १८६,१८९ से माखूज़ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया 📲 Download App - Goo.gl/mg4455 posted from Bloggeroid