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Showing posts from June, 2017

शश ईद के रोज़े कैसे रखे?

*SHASH EID ROZE KAISE RAKHE?* ⭕आज का सवाल नंबर.१०५४ ⭕ शश ईद के ६ रोज़े कब रखना शुरूआ करना चाहिए ? ६ लगातार रखना ज़रूरी है या अलग अलग भी रख सकते है ? 🔵जवाब🔵 पुरे शव्वाल के महीने में कभी भी रख सकते है. अलग अलग-फासला कर के रखना बेहतर है मुसलसल लगातार रखना भी मकरूह नहीं. 📗फतावा दारुल उलूम ६/४९१ बाहवाला शामी واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया *SHASH EID ROZE KAISE RAKHE?* ⭕आज का सवाल नंबर.१०५४ ⭕ शश ईद के ६ रोज़े कब रखना शुरूआ करना चाहिए ? ६ लगातार रखना ज़रूरी है या अलग अलग भी रख सकते है ? 🔵जवाब🔵 पुरे शव्वाल के महीने में कभी भी रख सकते है. अलग अलग-फासला कर के रखना बेहतर है मुसलसल लगातार रखना भी मकरूह नहीं. 📗फतावा दारुल उलूम ६/४९१ बाहवाला शामी واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

ईद मुबारक कहना

🔴आज का सवाल नंबर. १०५३🔴 आज कल लोग ईद के मवका पर ईद मुबारक कहते है इस का क्या हुक्म है इस का कोई शरीअत में सुबूत है ? 🔵जवाब🔵 लफ़्ज़े ईद मुबारक को सुन्नत और ज़रूरी समझे बगैर इन अलफ़ाज़ से मुबारक बादी देने में कोई हरज नहीं. मुस्तहब ये है के निचे के लफ़्ज़ों से मुबारकबादी दी जाये. हज़रात वसीलाह रदियल्लाहु अन्हु  फरमाते है के मेने नबी ए करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से ईद के दिन मुलाक़ात की है और मेने कहा *तकबल्लाहु मिन्ना व मिन्क* *अल्लाह हमारे और तुम्हारे नेक अमल क़बूल फरमाएं.* नबी सलल्लाहु अलैहि वसललम ने इरशाद फ़रमाया हाँ ज़रूर *तकबल्लाह मिन्ना व मिन्क* (सुनने बैहक़ी लील कुबरा हदीस नंबर ६०८८) अल्लामह अल्बानी रहमतुल्लाहि अलैहि ने इस हदीस की ताईद की है. और साहिबे हील्याह ने और मुहक़ीक़ इब्ने अमीरुल हाज ने सहीह सनदों के साथ बहोत से आसारे सहाबा नक़ल किये है और मुबारक के मवके पर बरकत की दुआ देना भी साबित है इस से ईद मुबारक कहना जाइज़ है 📚(मुहक़्क़क़ व मुदल्लल जदीद मसाइल (मुफ़्ती जाफर साहब रहमानी की) सफा १०१ बा हवाला 📘रद्दुल मुहतर आला दुर्रिल मुख़्तार ३/४७ किताबुस सलात) 📕 खैरुल फतावा

मुसाफह और मुआनकह

🔴आज का सवाल नंबर १०५२🔴 मुसाफह और मुआनकह कब करे ? 🔵जवाब🔵 जब भी मुस्लमान भाई से मुलाक़ात हो सब से पहले उसे सलाम करे फिर मुसाफह करे पहल करने वाले पर अल्लाह की ९० रहते उतरती है और दूसरे पर १० और जुड़ा होने से पहले अल्लाह ताला दोनों की मगफिरत फरमा देते हैं (मज़ाहिरे हक़) मुसाफह सलाम का तकमीलाह है यानि उस से सलाम मुकम्मल होता है और सलाम के बाद करना चाहिए. ईद के दिन नमाज़ के बाद मस्जिद में मुसाफह शियों की मुशाबेहत की वजह से मना है मस्जिद के बहार अगर मुलाक़ात न हुई हो तो मुलाक़ात की निय्यत से मुसाफा करे. ईद की खास सुन्नत और तरीकाः समझ कर न करे और मुआनकह सफर से आने के बाद या पहली बार मुलाक़ात हो रही हो तो मुआनकह करना चाहिए, ईद की मख़सूस रस्म समझकर मुआनकह न करे मुल्ला अली करि रहमतुल्लाहि अलैहि लिखा है फिर भी कोई मुसाफह के लिए हाथ बढ़ाये तो हाथ न खींचे हाथ खींचने में उस की ज़िल्लत होगी और उसे तकलीफ पहुंचेगी और ये हराम है, उस वक़्त मुसाफा कर ले फिर प्यार मुहब्बत से समझा दे, गरज़ नफरत का माहौल पैदा हो ऐसी कोई सूरत इख़्तियार न करे. हम एहले सुन्नत व जमात हैं, जो इबादत हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्ल

सदक़ए फ़ित्र कब दें ?

⭕आज का सवाल नंबर १०५१⭕ सदक़ए फ़ित्र कब देना चाहिए ? रमजान में दे सकते है ? ईद के दिन नहीं दिया तो क्या हुक्म है ? حامدا و مصلیا و مسلما 🔵जवाब🔵 सदक़ा फ़ित्र ईद के दिन ईदगाह में जाने से पहले देना चाहिए. रमजान में भी दे सकते है और ईद के दिन नहीं दिया तो मुआफ नहीं होता अब किसी भी दिन दे दें. 📗मसाइले रोज़ा सफा १८६,१८९ से माखूज़ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया 📲 Download App - Goo.gl/mg4455 posted from Bloggeroid

सदक़ा ए फ़ित्र के वुजूब का वक़्त

⭕आज का सवाल नंबर.१०५०⭕ सदक़ा ए फ़ित्र किस वक़्त वाजिब होता है और किस वक़्त नहीं ? 🔵जवाब🔵 सदक़ा ए फ़ित्र ईद की सुबह सादिक़ के वक़्त वाजिब होता है लिहाज़ा वह बच्चा जो सुबह सादिक़ से पहले पैदा हुवा या जो सुबह सादिक़ से पहले साहिबे निसाब हो गया या सुबह सादिक़ से पहले ईमान लाया तो उन पर वाजिब है लेकिन वह बच्चा जो सुबह सादिक़ के बाद पैदा हुवा या कोई सुबह सादिक़ के बाद मालदार हुवा या सुबह सादिक़ से पहले गरीब हो गया वह शख्स जो ईद की सुबह सादिक़ बाद ईमान लाया या सुबह सादिक़ से पहले मर गया तो उन पर उन के माल में से देना वाजिब नहीं. 📗मसाइल रोज़ा सफा २०८ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

फितरा कितना & क्या

⭕आज का सवाल नंबर १०४९⭕ एक आदमी का फितरा कितने रुपये है और क्या चीज़ दे सकते है? 🔵जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما सदका ए फ़ित्र में हर क़िस्म का गल्ला (अनाज) और क़ीमत देना जाइज़ है, उसकी तफ्सील ये है अगर गेहूं या उसका आटा दे तो हर आदमी का पौने दो किलो (१ किलो ७५० ग्राम) देना चाहिए, अगर गेहूं के अलावा और कोई गल्ला (अनाज) मसलन चावल, बाजरा, जवार, वगैरह दे तो पौने दो किलो गेहूं की क़ीमत या साढ़े तीन किलो (३ किलो ५०० ग्राम) जव की क़ीमत में जितना वो गल्ला आता हो इतना गल्ला देना चाहिए, और अगर क़ीमत दे तो पौने दो किलो गेहूं या साढ़े तीन किलो जाव की कीमत देनी चाहिए, ➡(आज के हिसाब से ५० रुपये अदा करने होंगे) सब से बेहतर फ़ित्र ये है के, आज कल छुआराः (खारेक) या किसमिस (सुखी दराख) की कीमत और वज़न का निसाब ज़ियादा है, लिहाज़ा साढ़े तीन किलो खारेक या दराख की कीमत बेहतर है, हदीस में है के अल्लाह तुम्हे ज़ियादा दे तो तुम भी ज़ियादा दो. ✳कॉमन फितरा गेहूं की क़ीमत रु ५० [साल २०१७] ✳ गुड फितरा साढ़े तीन किलो जव या उस की क़ीमत रु.१०० (साल २०१७) ✳बेटर फितरा साढ़े तीन किलो खजूर या उस की क़ीमत

एतिकाफ में जाईज़ काम

⭕आज का सवाल नम्बर १०४३⭕ एतकाफ की हालत में जाइज़ काम कौन कौन से है? 1- खाना पीना ( बशर्ते के मस्जिद को गन्दा न किया जाये), 2- सोना, 3- ज़रूरत की बात करना, 4- अपना या दुसरे का निकाह करना, 5- कपडे बदलना, 6- खुशबु लगाना, 7-तेल लगाना, 8- कंघी करना (बशर्ते के मस्जिद की चटाई और कालीन वगेरा ख़राब न हो ), 9- मस्जिद में किसी मरीज का मुआयना करना, नुस्खा लिखना या दवा देना, लेकिन ये काम बगैर उजरत के हो तो जाइज़ हे वर्ना मकरूह हे, 10- बर्तन धोना, 11- ज़रूरियाते ज़िंदगी के लिए घर का खर्चा चलने के लिए खरीद फरोख्त करना बशर्ते के सौदा मस्जिद में न लाया जाये, 12- औरत का ऐतिकाफ की हालत में बच्चो को दूध पिलाना, 13- मोअतक़िफ़ {ऐतिकाफ करने वाले} का अपनी निशिष्टगाह {खाने सोने की जगह} के इर्द गिर्द चादरे लगाना, 14- मोअतक़िफ़ का मस्जिद में अपनी जगह बदलना, 15- बक़द्रे ज़रूरत बिस्तर, साबुन, खाने पीने के बर्तन, हाथ धोने के बर्तन और मुताला के लिए दीनी किताबे मस्जिद में रखना. 📗मसाइले एतिकाफ से

एतिकाफ की क़िस्में & औरतों का एतिकाफ

🔴आज का सवाल नंबर १०४०🔴 औरतों को एतिकाफ करने का क्या तरीक़ा है ? ऐतिकाफ की कितनी क़िस्में है ? 🔵जवाब🔵 औरत को अपने घर की मस्जिद में एतेकाफ़ करना चाहिए, अगर घर में कोई जगह मस्जिद के लिए मुतय्यन न हो तो कोई कोने (कॉर्नर) को मख़सूस (तय) कर दें, किसी जगा को तय किये बगैर एतिकाफ सहीह नहीं होगा औरतों के लिए ऐतिकाफ बा-निस्बत मर्दों के ज़ियादा सहल (आसान, इजी) है के घर में बैठे बैठे घर का कारोबार भी घर की लड़कियों से लेती रहे और मुफ्त का सवाब भी लेती रहे. मगर इसके बावजूद भी औरतें इस सुन्नत से गोया बिलकुल ही महरूम रहती है, हनफिययाह के नज़दीक एतेकाफ़ की तीन ३ सूरतें है, १. वाजिब जो किसी मन्नत या नज़र की वजह से हो, जैसे यूँ कहे के मेरा फुलां काम हो गया तो इतने दिन का एतेकाफ़ करूँगा, या बगैर किसी काम पर मौक़ूफ़ रखने के यूँ कहे के मैंने इतने दिन का एतेकाफ़ अपने ऊपर लाज़िम कर लिया तो ये वाजिब है, और जितने दिनों की निय्यत की है उतना पूरा करना

एतिकाफ कहाँ ज़रूरी?

🔴आज का सवाल नम्बर.१०३९🔴 ऐतिकाफ का क्या हुक्म है? क्या एतिकाफ ज़रूरी है? 🔵जवाब ★ रमजान के आखरी १० दिन का ऐतिकाफ सुन्नते मुअक्कदह अलल किफ़ाया हे, ⇨ अगर बस्ती-मोहल्ले के कुछ लोग इस सुन्नत को अदा करे तो मस्जिद का हक़ जो अहले मोहल्ला पर लाज़िम हे अदा हो जायेगा, और अगर मस्जिद खाली रही और कोई शख्स भी ऐतिकाफ में न बैठा तो सब मोहल्ले वाले गुनेहगार-लाइके इताब होंगे और मस्जिद के ऐतिकाफ से खाली रहने का वबाल पूरे मोहल्ले पर पड़ेगा, ★ जिस मस्जिद में नमाज़ पंज वक्ता बजमा’अत होती हो उसमे ऐतिकाफ के लिए बैठना चाहिए, अगर जुमा न होता हो तो भी बैठना चाहिए, ऐसे मुआटाकिफ़ को जुमा पढ़ने जाना जाइज़ है और अगर मस्जिद ऐसी हो जिसमे पंज वक्ता नमाज़ बजमा’अत न होती हो, उसमे पंज वक्ता नमाज़ बजमा’अत का इंतेज़ाम करना अहले मोहल्ला पर लाज़िम हे, ★ औरत अपने घर में एक जगह नमाज़ के लिए मुक़र्रर करके वह ऐतिकाफ करे, उसको मस्जिद में ऐतिकाफ में बैठने का सवाब मिलेगा, 📘आपके मसाइल और उन का हल,३/३२०

वह उज़्र जिस की वजह से रोज़ा तोड़ देना जाइज़

🔴आज का सवाल नम्बर.१०३८🔴 वह कोण कोण से उज़्र-मजबूरी है के जिस की वजह से रोज़ा तोड़ देना जाइज़ है? 🔵जवाब🔵 १. अचानक ऐसा बीमार हो जाये के अगर रोज़ा न तोड़ेगा तो तो जान खतरे में हो जाएगी या बीमारी बढ़ जाएगी २. खाना पकने की वजह से बे हद प्यास लगी और इतनी बेताब हो गई के अब जान का खौफ है. ३. हामिला औरत को कोई ऐसी बात पेश आयी के जिस से अपनी जान या बच्चे की जान का दर है तो इन तमाम सूरतों में रोज़ा तोर डालना बेहतर है. लेकिन जानबूझकर किसी ने ऐसा काम किया जिस से रोज़ा तोड़ने जैसी हालत हो जाये तो तो खुद गुनेहगार होगा. 📘मसाइल रोज़ा साफा १७७ बहवला 📕बहिश्ती ज़ेवर ३/१७ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

ज़कात में नकद (कॅश) की जगह दूसरी कोई चीज़ देने का हुक्म

⭕आज का सवाल नंबर १०३६⭕ क्या पैसे के बजाये कोई चीज़ भी ज़कात में दे सकते हैं ? या पैसे ही देना चाहिए ? मसलन जिस आदमी की जिस चीज़ की तिजारत करता हो मसलन कपड़ा, अत्तर, खाने पिने की चीज़ वगैरा भी ज़कात में दे सकते हैं ? 🔵जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما हाँ ज़कात में पैसे (कॅश) ही देने ज़रूरी नहीं सवाल में पूछी हुवी चीज़ वगैरा की बाज़ारी क़ीमत लगा कर उसे मालिक बना कर दे देने से भी ज़कात अदा हो जाएगी. अलबत्ता नक़द पैसे देना बेहतर है के गरीब आदमी की जो भी ज़रूरत होगी वह पैसो से आसानी से पूरी हो जाएगी. 📗मसाइले ज़कात सफ़ा २०४ से माखूज़ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया 📲 Download App - Goo.gl/mg4455

QARZA KO ZAKAT ME LIKH LENA

⭕आज का सवाल नंबर १०३४⭕ एक मुस्लमान भाई के पास मेरा क़र्ज़ा बाक़ी है, वह हालत में आ जाने की वजह से दे नहीं सकता है, वह ज़कात का मुस्तहिक़ है, तो क्या में वह क़र्ज़ा में उस से न मांगू, और उसे ज़कात में शुमार कर सकता हूँ ? 🔵जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما पूछी हुई सूरत में ज़कात अदा नहीं होगी, क्यों के ज़कात की अदायगी के लिए मालिक बनाना ज़रूरी है, वह यहां नहीं पाया गया. लिहाज़ा ज़कात भी अदा हो जाये उसका तरीक़ह यह है के : मुस्तहिक़ ए ज़कात मक़रूज़ को वापस देने की शर्त किये बगैर रुपियों का क़ब्ज़ा देकर मालिक बनाया जाये. फिर उसे दरखास्त की जाये के यह पैसा मुझे मेरे क़र्ज़े में चूका दो, अगर वह पुरे या जितने पैसे वापस दे देता है उतने की ज़कात अदा हो जाएगी. 📗मसाइले ज़कात से माखूज़ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

पाँच वुजुहात की बिना पर रोज़ा न रखने की इजाज़त है।

*पाँच वुजुहात की बिना पर* *रोज़ा न रखने की इजाज़त है।⭕*आज का सवाल नो.1033⭕ शरीअत मे किन वुजूहत की वजह से रोज़ न रखने की इजाज़त है? 🔵आज का जवाब🔵 नीचे दी गई पांच वुजूहात की वजह से रोज़ा न रखने की इजाज़त है 1) *मर्ज़*=(बिमारी) जिसकी वजह से रोज़ा रखने की ताक़त न हो। या रोज़ा रखने से बिमारी बढ़ जाने का अंदेशा हो। (बिमारी खतम होने के बाद क़ज़ा करना ज़रूरी) 2) *मुसाफिर*= शरई मुसाफिर। जिसकी कम से कम सफर की मिक़दार 77.50km है। (मुक़ीम होने के बाद क़ज़ा करना ज़रूरी) *नोट* सफरे शरईमें रोज़ा न रखने की इजाज़त तो है लेकिन अगर रोज़ा रखने में ज़्यादा तकलीफ न हो तो रोज़ा रखना बेहतर है। 3) *बुढ़ापा*= ऐसा बूढ़ा कमज़ोर (बूढ़ा/बुढ़िया) जो रोज़ा न रख सकते हो और वो रोज़े के बदले फिदया 1कि.750ग्राम गरीब को दे। (लेकिन अगर अल्लाह सेहत दे तो क़ज़ा करना ज़रूरी है।) 4) *हामिला*/ *दूध पिलाने वाली*= जिनको रोज़ा रखने से अपनी जान या बच्चे को तकलीफ पहुँचने का अंदेशा हो। (बाद में क़ज़ा करना ज़रूरी है) 5) *हैज़ व निफ़ास*= हाईज़ा व निफ़ाज़ वाली औरतों के लिये रोज़ा रखना दुरुस्त नहीं। अगर रख ले तो रोज़ा अदा न होगा। और ये गुनहगार होगी। (पा

रोज़ा तूटने के बाद क्या करे ?

*रोज़ा तूटने के बाद क्या करे ?* ⭕आज का सवाल नंबर १०३२⭕ औरत को हैज़ आ गया, या हैज़ से पाक हो जाये तो बाक़ी दिन खाना खा सकती है ? 🔵जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما हैज़ आने से रोज़ा तूट जाये तो बाक़ी दिन कुछ खाना पीना सब के सामने दुरुस्त नहीं, तन्हाई में खाये पिये, सारे दिन रोज़ेदारों की तरह रहना मुस्तहब है. अलबत्ता कोई औरत हैज़, निफ़ास से दिन में ही पाक हो जाये तो बाक़ी दिन रोजहदारों की तरह बगैर खाये पिये रहना वाजिब है. 📘मसाइले रोज़ा सफ़ा ८५, बाहवाला 📕बहिश्ती ज़ेवर ३/२३ 📗फतावा रहीमियाह 7/३९३ 📘अहसनुल फतावा ४/३३८ واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया 📲 Download App - Goo.gl/mg4455

इस्तिंजा करने से रोज़ह टूटने की सूरत का हुक्म* *बवासीर पर दवाई लगाना

*इस्तिंजा करने से रोज़ह टूटने की सूरत का हुक्म* *बवासीर पर दवाई लगाना* ⭕आज का सवाल १०३१⭕ अ. क्या बड़ा इस्तिंजा करते वक़्त साँस ना रोका जाये तो पाखाने के मक़ाम से पानी पेट में पहोंच जाता है? बिला साँस रोके हम आम तौर पर इस्तिंजा करते है उस से रोज़ह टूट जाता है? ब. बवासीर-मस्से-पाइल्स पर दवाई लगाने से रोज़ह टूट जायेगा? 🔵जवाब🔵 अ पाखाने से मक़ाम पर पानी ऐसे ही पहोंचने की कोशिश किये बगैर नहीं पहुंचता है, क्यों के हुकनाह की जगह जहां से पिचकारी के ज़रिये दवाई पहुचायी जाती थी वह थोड़ा अंदर आंत-होजड़ी से मिला हुवा होता है वहां पानी पहुंचे तो ही रोज़ह टूटता है. किसी को कांच (पिच्छी की जगा से गोल लाल हिस्साः निकल आना ) निकल आया हो तो उस के बारे में तहवी में मसला लिखा है के पाखाने के जगह से जाइड पानी झाड़ दिया जाये फिर उस पर पानी की तरी लगी होती है उस को कपडे से पोंछना वाजिब नहीं, अगर वह कांच जिस पर मामूली तरी हो अंदर चले जाये तो रोज़ह नहीं टूटेगा.

मिल और कारखानों फैक्ट्री पर ज़कात

⭕आज का सवाल ⭕ *नंबर १०३०* मिल और कारखानों की मशीनरी और रॉ मटेरियल की ज़कात का क्या हुक्म है ? 🔵 आज का जवाब 🔵 حامدا و مصلیا و مسلما कारखाना और मिल की इमारत और मशीन वगेरा पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं, लेकिन उसमे जो माल तैयार होता हे उस पर ज़कात फ़र्ज़ हे, इसी तरह जो खाम माल (रॉ मटेरियल) कारखाने में सामान तैयार करने के लिए रखा हे, उस पर भी ज़कात फ़र्ज़ हे, 📗 दुर्रे मुख़्तार, शामी, 📘फ़िक्हुल इबादात, २७६ و اللہ اعلم ✏ हक़ का दायी अन्सार अहमद 📝तस्दीक़ मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया. 📲 Download App - Goo.gl/mg4455

औरत को हैज़, मासिक, निफ़ास आ जाये तो क्या रोज़ा बाक़ी रहेगा ?

⭕आज का सवाल नंबर १०२९ ⭕ औरत को हैज़, मासिक, निफ़ास आ जाये तो क्या रोज़ा बाक़ी रहेगा ? हमल की हालत में खून आ जाये तो रोज़े का क्या हुक्म हे .? 🔵 आज का जवाब🔵 حامدا و مصلیا و مسلما रोज़े को तोड़ने वाली चीज़ों में से १ हैज़ और निफ़ास का आ जाना भी हे. लिहाज़ा रोज़ा बाक़ी नहीं रहेगा. और जो खून औरत को हमाल की हालत में आये वोह बीमारी का खून हे, जो रोज़ा रखने के मनफ़ी नहीं हे. लिहाज़ा हमाल की हालत में खून आने के बावजूद औरत रोज़ा रख सकती हे . 📘फतवा हक़्क़ानिया जिल्द ४ सफ़ा १५७. واللہ اعلم ✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू 🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया 📲 Download App - Goo.gl/mg4455