चार रकत पर पढ़ने की दुआ की हक़ीक़त.

*चार रकत पर पढ़ने की दुआ की हक़ीक़त*

⭕आज का सवाल नंबर १०२४ ⭕

तरावीह की चार ४ रकात के बाद जो दुआ पढ़ी जाती है वह हदीस से साबित है?

🔵 आज का जवाब🔵

حامدا و مصلیا و مسلما

तरावीह की हर ४ रकात के बाद जो दुआ पढ़ी जाती है उसके अल्फ़ाज़ मुख्तलिफ अहादीस से साबित हैं उसमे बाज़ हदीस की सनद बहोत ही कमज़ोर है. पूरी दुआ किसी एक हदीस में नहीं आयी है.

और उसको तरविहा(तरावीह की चार रकात) के बाद पढ़ना किसी भी हदीस से साबित होना बहोत मुश्किल है.

यह दुआ अल्लामाह इब्ने आबेदीन अपनी किताब शामी में नक़ल की है जिसकी वजह से मुख्तलिफ किताबों और हमारे इलाक़ों में राइज हो गयी तरविहा में हनफ़िया के नज़दीक ३ इख़्तियार है उस वक़्त तस्बीह पढ़े, या हम्द करे, या खामोश रह कर अगली रकात का इन्तिज़ार करे.

📗 मूहिते बुरहानी २/१८१
📕जवहरून नय्याराह सफा ३८५

📘मर्गूबुल फतवा ३/४२९
में उलमा ऐ देवबंद का ये मौक़फ़ लिखा है के
उस वक्त ज़िक्र करना मुस्तहब है लेकिन बहोत से इलाक़ों में इस में गुलु होने लगा है.

मुस्तहब के साथ वाजिब और ज़रूरी जैसा मुआमला किये जाने लगे तो फुक़्हा (मसाइल के माहिरीन) उसको छोड़ देने का हुक्म देते हैं इस दुआ को ज़ोर से पढ़ने का भी बाज़ इलाक़ों में रिवाज होने लगा है बाज़ मस्जिद में क़िबलाह की दिवार पर इसके पोस्टर जगह जगह पर चिपकाये जाने लगे हैं और एहतमाम से इसके लाइट बोर्ड और कार्ड बनाये जाने लगे हैं.

तरविहा के वक़्त यह दुआ पढ़ने की गुंजाईश तो है अल्बत्ताह दूसरे मस्नून अज़कार पढ़ने का ज़ियादह सवाब है.

*जैसे سبحان اللہ و الحمد للہ و لا اله الا اللہ واللہ اکبر*

उस दुआ की जगह इसके पढ़ने का इमाम ऐ रब्बानी हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही रहमतउल्लाई अलैह मामूल था इसकी फ़ज़ीलत सहीह अहादीस से साबित है इसलिए इसका तकरारा-बार बार पढ़ना अफ़ज़ल है.

📙फतावा दारुल उलूम देवबंद ४/२४६

हजरत हकीमुल उम्मत थानवी रहमतुल्लाहि अलैहि से पूछा गया के आप क्या पढ़ते हो तो फ़रमाया उस वक़्त कोई खास ज़िक्र शरण मुतय्यन नहीं इसलिए में २५ बार दुरूद शरीफ पढ़ लेता हूँ.

📔तोहफा इ रमजान सफा ११

अबू मुआज मक्की के उर्दू मज़मून का खुलासा

و اللہ اعلم

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