मुसाफह और मुआनकह

🔴आज का सवाल नंबर १०५२🔴

मुसाफह और मुआनकह कब करे ?

🔵जवाब🔵

जब भी मुस्लमान भाई से मुलाक़ात हो सब से पहले उसे सलाम करे फिर मुसाफह करे पहल करने वाले पर अल्लाह की ९० रहते उतरती है और दूसरे पर १० और जुड़ा होने से पहले अल्लाह ताला दोनों की मगफिरत फरमा देते हैं (मज़ाहिरे हक़) मुसाफह सलाम का तकमीलाह है यानि उस से सलाम मुकम्मल होता है और सलाम के बाद करना चाहिए.

ईद के दिन नमाज़ के बाद
मस्जिद में मुसाफह शियों की मुशाबेहत की वजह से मना है मस्जिद के बहार अगर मुलाक़ात न हुई हो तो मुलाक़ात की निय्यत से मुसाफा करे. ईद की खास सुन्नत और तरीकाः समझ कर न करे

और मुआनकह सफर से आने के बाद या पहली बार मुलाक़ात हो रही हो तो मुआनकह करना चाहिए, ईद की मख़सूस रस्म समझकर मुआनकह न करे

मुल्ला अली करि रहमतुल्लाहि अलैहि लिखा है फिर भी कोई मुसाफह के लिए हाथ बढ़ाये तो हाथ न खींचे हाथ खींचने में उस की ज़िल्लत होगी और उसे तकलीफ पहुंचेगी और ये हराम है, उस वक़्त मुसाफा कर ले फिर प्यार मुहब्बत से समझा दे, गरज़ नफरत का माहौल पैदा हो ऐसी कोई सूरत इख़्तियार न करे.

हम एहले सुन्नत व जमात हैं, जो इबादत हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम और ताबीइन और तबे ताबीइन रहमतुल्लाहि अलैहि जिस तरह जिस दर्जे में साबित होगी उसी तरह हम अमल करेंगे तो ही सुन्नत अदा होगी, और सवाब मिलेगा अपनी तरफ से ज़रा बराबर कमी बेशी हमारे अकाबीरीन को गवारा नहीं है और यही सिराते मुस्तक़ीम सीधा और नजात का रास्ता है.

📚मसाइल अदबो मुलाक़ात ८३ से ८६

واللہ اعلم

✏मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन हनफ़ी गुफिर लहू

🕌उस्ताज़े दारुल उलूम रामपुरा सूरत गुजरात इंडिया

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